-A Friendship Lost-
ज़िंदगी में अभी बहुत से तजुर्बे होने बाक़ी हैं, पर ऐसा क्यों लगता है कि ये सब अभी थम क्यों नहीं जाता। काश ऐसा कुछ हो जिससे इंसान के साथ-साथ उसकी बातें, उसकी यादें, उसका हसना, उसकी आवाज़, उसका वजूद ही ज़हन से मिटाया जा सके!
12/28/20231 min read
-A Friendship Lost-
आख़िर लोग किस तरह से रहना सीख जाते हैं उनके बग़ैर जिन्हें वो एक वक़्त अपना समझते हैं और उन्हें हद से बढ़कर दिल में जगह देते हैं?
क्या ये मुमकिन है? क्या सच में आगे बढ़ जाना इतना आसान है क्या? ये सवाल जितना आसान है उतना ही मुश्किल भी क्योंकि इस एक सवाल के साथ आते हैं लाखों और सवाल जिनके मायने और जवाब एक रात में तो नहीं मिलेंगे।
मैं ये जानती हूँ कि हर रिश्ते का अपना मुस्तक़बील और अपना समय होता है, वक़्त और उमर से ज़्यादा ना तो इंसान चलता है और ना ही रिश्ते, पर फिर भी ऐसा क्यों होता है कि बावजूद हर कोशिश के कुछ रिश्ते और कुछ लोग भुलाए नहीं भूलते!
ऐसा क्यों कि इंसान चला जाता है पर उसका ख़्याल और उसका एहसास नहीं जाता, ऐसा क्यों कि दिन में दस नयी चीज़ें देखने और सीखने के बाद भी एक वही पुरानी आदत सामने आकर खड़ी हो जाती है।
ज़िंदगी में अभी बहुत से तजुर्बे होने बाक़ी हैं, पर ऐसा क्यों लगता है कि ये सब अभी थम क्यों नहीं जाता। काश ऐसा कुछ हो जिससे इंसान के साथ-साथ उसकी बातें, उसकी यादें, उसका हसना, उसकी आवाज़, उसका वजूद ही ज़हन से मिटाया जा सके!
रिश्ते बनाने में अरसे और कई लम्हे बीत जाते हैं, पर रिश्ते टूटने में ज़रा वक़्त नहीं लगता। ऐसा क्यों होता है कि भगवान हमें रिश्ते तो देते हैं मगर उसके साथ-साथ ऐसे हालात दे डालते हैं जिनमें रिश्ते ही नहीं बचते।
रिश्ते बनाना एक बात है और उन्हें चलाना एक। रिश्ते बच्चे की तरह होते हैं, उन्हें सामने बनता-बिगड़ता देखना पड़ता है। कई दिन ऐसे होते हैं जहाँ मन ही नहीं होगा कि यह ख़त्म हो, और कई दिन ऐसे जो अज़ाब होंगे, पर उन्हें संझोह के और समेत के रखना पड़ता है।
किसी के जाने से किसी की ज़िंदगी भले ना रुकती हो, पर एक ख़ाली जगह भरने में उमर बीत जाती है और तब भी नहीं भरती।
ख़ैर, जाने वाले को तो कोई नहीं रोक सकता लेकिन इंतज़ार करने वाले का भरोसा भी कभी नहीं ख़त्म होता है।
शायद किसी रोज़, बनारस की ठंडी में वही हसी-मज़ाक़ और बातें फिर हो, या शायद इन्हीं सन्नाटों में कई सर्दियाँ अपनी सी ना लगे!
लोग कहते हैं कुछ चीज़ों की दवा केवल वक़्त है, तो फिर वक़्त पर हम सब छोड़ देते हैं, लेकिन वो हसी-मज़ाक़ के दिन और ना जाने कितनी बातें याद आएँगी!